कभी खुद से पुछा मैने

बहता था दरिया दिल मे तेरे

क्यो थम सा गया है

क्यो रूक सा गया है

चट्टाण है या पहाड कोई

डूबा रहा जो बोझ तले

जो तूम चूप चूप बैठे हो

या आदत सी हो गयी है अब

घनी धुंध के अंधेरो मे

भटक गये तूम मंझील से

बची नही अब मंझील कोई

या रास्ते ही खो गये

ये मंझील भी क्या होती है

ये क्या हमे दे जाती है

पता नही क्यों सब कूछ मुझे

बिखरा बिखरा दिखता है

©️ShashikantDudhgaonkar