सोच बंद हो जाए
सवाल खतम हो जाए
जो ढूंढ रहा हूं
जवाब मिल जाएं
आँखे बंद करू तो
नींद आ जाए
खुशी तो नहीं
कुछ पल के लिए
चैन मिल जाए
बस और क्या चाहूं
चाह भी क्या सकता हूं
चाहने को अब बचा ही क्या
थोडी खरोचे
बहोत सारे घाव
बहती हुई धार
कागज पर उमडती हुई
श्याई लाल
किसकी ओर करू उंगली
किसको करू इशारा
सब अपने ही हैं
घाव देनेवाले
मरहम लगानेवाले
कौन अपना कौन पराया
सवाल अब नही उठता है
उम्मीदों के परे अब
पहुंच चुकी है जिंदगी
अफसोस सिर्फ अब होता है
अफसोस सिर्फ अब होता है
©️ShashikantDudhgaonkar