
बैचेन शाम
ना उजाला
ना अंधेरा
अजीबसा माहोल है
दबे पावसे
आयी है शाम
लंबे साये
लेकर साथ
बैचेनी है रंज है
थकान भी है
दिन भर की
चाय की प्याली
सामने है
थंडा करके पिता हूं
रात की उम्र बढने तक
अखबार बांसी
पढतां हू
©️ShashikantDudhgaonkar
बैचेन शाम
ना उजाला
ना अंधेरा
अजीबसा माहोल है
दबे पावसे
आयी है शाम
लंबे साये
लेकर साथ
बैचेनी है रंज है
थकान भी है
दिन भर की
चाय की प्याली
सामने है
थंडा करके पिता हूं
रात की उम्र बढने तक
अखबार बांसी
पढतां हू
©️ShashikantDudhgaonkar
बहुत ही प्यारी कविता है । बस शाम बैचेनी के बजाय आरामदायी और सुखद होनी चाहिए ।
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