
विफलता
बहोत सहा है चंद दिनो मे
जाना कुछ कुछ समझा है
भिड इतनी अस्पतालो मे
जगह न कोई खाली थी
कोशीशे मेरी विफल रही
वो बाहों मे दम तोड गये
गया फिर उनको लेकर मै
अकेले समशान घाट पर
भिड देखकर वहा खडी
आसूं मेरे सुख गये
क्रिया करम करके जब
पहुंचा घर बडी देर से
पुछ रहे थे क्या हुआ
हम राह देखते डर गये
क्या कहता उनको मै अब
कितना मैने खो दिया
दो चार दिनो मे मैने
क्या क्या नही देख लिया
सह रहा हू गम अकेले
और विफलता अब मेरी
गले मीलने आंसू बहाने
आता नही अब घर कोई
©️ShashikantDudhgaonkar