सहारे

फैली हुई आग को

बुझा दे शायद

बेमौसम बारीश जो

बरस रही है खुलके

निशानी है शायद

या शगुन कोई

कोशीशो के सरहद्द पर

बहलाता हू खुद को

बेकशी के हालात मे

तिनको मे भी

ढुंढता हूं सहारे

©️ShashikantDudhgaonkar