इजहार

कहनी थी बाते

कुछ उनसे अनकही

कुछ ॲांखोने सुनाई

कुछ धडकन बया कर गयी

खामोश खेलती रही

वो उंगलीयोंसे हमारे

हाथोंपर न जाने

क्या क्या लिखती गयी

यूं तो उन्होनेभी

कहा कुछ नही

ना हमने कहनेकी

कोशिश की

कह दिया जो कहना था

उन लम्होने हमसे

और फिजूल हो गये

अब अल्फाज सारे

©️ShashikantDudhgaonkar