आशियाना

उलझे हुएं खयाल

सुलझते नही

अंधेरे है के

हटते नही

खौफ नही है अब

गुम हो जाने का

कही राह निकल आए

यही इक डर है

ये नही के ढुंढ रहां हूं

आशियाना यहां

पर कभी ना कभी तो

ठहर जाना है

कही ना कही

तो रूक जाना है |

©️ShashikantDudhgaonkar