बंद आंखे

बदल गये है हालात यहां

कुछ ऐसे आजकल

के भरी दोपहर मे आती है

रात अचानक उभरकर

हम कहते नही है झुठ

देखों आप झांककर

बंद आंखोपर लगी हुई

पट्टीयां फाडकर

उडते नही अब पंछी यहा

फिजा खाली खाली है

सुकून ढूंढ रहे है, वोह अब

सय्यादोके जाल पर

हम कहते नही है झुठ

देखों आप झांककर

बंद आंखोपर लगी हुई

पट्टीयां फाडकर

पेंड पैदल निकल पडे है

मौसम और रूख के साथ

लोग गाडकर जडें अपनी

ढुंढ रहे अतीत को

हम कहते नही है झुठ

देखो आप झांककर

बंद आंखोपर लगी हुई

पट्टीयां फाडकर

कोई कहें, वह डरा हूंआ है

कोई कहें, वह मरा हूंआ है

कोई अपने जख्मो की दवा

ढूंढ रहा है कातीलके घर

हम कहते नही है झुठ

देखो आप झांककर

बंद आंखोपर लगी हुई

पट्टीयां फाडकर

©️ShashikantDudhgaonkar